ग्राम पंचायत सचिवों की अनसुनी पुकार: जो गांव का भविष्य संवारते हैं, उनका खुद का भविष्य अंधकार में

ग्राम पंचायत सचिवों की अनसुनी पुकार: जो गांव का भविष्य संवारते हैं, उनका खुद का भविष्य अंधकार में
रायपुर। गांव के विकास की नींव रखने वाले पंचायत सचिव आज खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। शासन की योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाले, गांवों के सपनों को हकीकत में बदलने वाले ये सचिव, अपने ही अधिकारों के लिए सड़कों पर बैठे हैं। आठ दिन से जारी हड़ताल के बावजूद सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हुई। यह कैसी विडंबना है कि जो गांवों को संवारते हैं, उनके अपने भविष्य की कोई गारंटी नहीं?

दिन-रात सेवा, फिर भी असुरक्षित जीवन
पंचायत सचिव ही वह कड़ी हैं, जो सरकार की हर योजना को गांव-गांव तक पहुंचाते हैं। कभी किसानों के खेतों तक योजना का लाभ पहुंचाने दौड़ते हैं, कभी गरीब परिवारों तक राशन और रोजगार की व्यवस्था कराने में जुटे रहते हैं। लेकिन जब बात उनकी स्थायित्व की आई, तो सरकार ने आंखें मूंद लीं।

गांवों के विकास में अपने जीवन की पूरी ऊर्जा झोंक देने वाले इन सचिवों को न स्थायी नौकरी मिली, न सामाजिक सुरक्षा। वे अस्थायी रूप से काम करते हैं, लेकिन उन पर स्थायी कर्मियों जितनी ही जिम्मेदारी होती है। जब पूरा देश विकास की राह पर बढ़ रहा है, तब इन्हें अपने अधिकारों के लिए हड़ताल का सहारा लेना पड़ रहा है।

महिला पंचायत सचिवों की दोहरी पीड़ा
इस हड़ताल में बड़ी संख्या में महिला पंचायत सचिव भी शामिल हैं, जिनकी तकलीफें पुरुषों से कहीं अधिक हैं। महिलाओं को घर और नौकरी दोनों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती है। कई महिलाएं छोटे बच्चों को लेकर हड़ताल स्थल पर बैठी हैं, तो कुछ अपने परिवार को छोड़कर दूर-दराज से प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं।

एक महिला पंचायत सचिव ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा—
“हम दिन-रात गांवों की सेवा करते हैं, लेकिन जब अपने अधिकारों की बात आई, तो हमें सड़क पर बैठना पड़ा। घर की जिम्मेदारी भी हमारी, गांव की योजनाएं भी हमारी, और अब अपनी नौकरी बचाने के लिए संघर्ष भी हमें ही करना पड़ रहा है। क्या सरकार को हमारी मेहनत और संघर्ष दिखाई नहीं देता?”

महिलाओं के लिए यह हड़ताल सिर्फ वेतन और स्थायित्व की लड़ाई नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई भी बन गई है। घर और धरना—दोनों मोर्चों पर लड़ाई लड़ रही ये महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुकी हैं, लेकिन पीछे हटने को तैयार नहीं।

“अगर सरकार एस्मा लगाएगी, तो भी नहीं हटेंगे पीछे”
सरकार ने अब तक हड़ताल खत्म करने की दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाया, बल्कि सख्त कार्रवाई के संकेत देने लगी है। पंचायत सचिव संघ ने स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (ESMA) लागू करती है, तब भी वे पीछे नहीं हटेंगे।

“हम गांवों को संवारने का काम करते हैं, लेकिन खुद का भविष्य अंधकार में है। सरकार अगर हमें जबरन काम पर लौटाने की कोशिश करेगी, तब भी हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। यह सिर्फ हमारी नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण भारत की लड़ाई है!

हड़ताल से रुका गांवों का विकास, लेकिन सरकार मौन
इस आंदोलन का असर अब गांवों में दिखने लगा है। पंचायतों में ताले लटके हैं, मनरेगा मजदूरों को काम नहीं मिल रहा, राशन वितरण प्रभावित हो गया है। छोटे किसान और गरीब परिवार, जिन्हें सचिवों की मदद की जरूरत थी, वे परेशान हैं। विकास कार्य रुक चुके हैं, लेकिन सरकार अब भी चुप्पी साधे बैठी है।

कब तक अनसुनी रहेगी ये पुकार?
सरकार ने पंचायत सचिवों से वर्षों तक सेवा ली, लेकिन जब उनके भविष्य को सुरक्षित करने की बारी आई, तो उसे सुनने तक की फुर्सत नहीं। ये सचिव गांवों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी जिंदगी खपा चुके हैं, लेकिन उनकी अपनी जिंदगी अनिश्चितता के अंधेरे में धकेल दी गई है।

यह सिर्फ पंचायत सचिवों की लड़ाई नहीं है, यह सवाल है उस व्यवस्था का, जो अपने ही कर्मियों को अनदेखा कर देती है। कब तक विकास की असली रीढ़ को इस तरह संघर्ष करना पड़ेगा? क्या सरकार इनकी गुहार सुनेगी, या फिर ये हड़ताल एक लंबी लड़ाई का रूप लेगी? अब देखना यह है कि सरकार पंचायत सचिवों की पीड़ा को समझती है या उन्हें मजबूरी में अपना हक मांगने के लिए और संघर्ष करना पड़ेगा।


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