*बस्तर का अनोखा माड़पाल: जहां दशहरे की तरह जलती है होलिका, 600 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम रंगों का उत्सव, राजसी अंदाज: छत्तीसगढ़ के माड़पाल की ऐतिहासिक होली*

बस्तर, छत्तीसगढ़: होली का नाम आते ही रंगों, गुलाल और उमंग की तस्वीरें उभरती हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के माड़पाल गांव में होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि राजसी परंपराओं और आस्था का भव्य संगम है। यहां होलिका दहन किसी साधारण अनुष्ठान की तरह नहीं, बल्कि दशहरे के त्योहार की भव्यता से किया जाता है। इस ऐतिहासिक परंपरा की जड़ें 600 साल पुरानी बस्तर रियासत से जुड़ी हैं, जिसे आज भी पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।
कैसे हुई यह परंपरा शुरू?
माड़पाल की इस अनोखी होली का इतिहास बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव से जुड़ा है। कथा के अनुसार, जब राजा जगन्नाथ पुरी की यात्रा से लौट रहे थे, तो गांव के ग्रामीणों ने उन्हें रोक लिया और होलिका दहन करने का अनुरोध किया। राजा ने इसे स्वीकार कर लिया और तब से यह परंपरा हर साल निभाई जा रही है। आज भी बस्तर राजपरिवार के सदस्य इस आयोजन में शामिल होते हैं और रथ यात्रा के माध्यम से इस ऐतिहासिक परंपरा को जीवंत बनाए रखते हैं।
माड़पाल की होली को खास बनाते हैं ये अनोखे रीति-रिवाज
युगल होलिका दहन – एक नहीं, दो होलिकाएं जलती हैं
माड़पाल में होलिका दहन की परंपरा औरों से अलग है। यहां एक नहीं, बल्कि दो होलिकाओं को जलाया जाता है, जिसे युगल होलिका दहन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में विशेष पूजा-अर्चना के बाद रथ पर रखे छत्र को मंदिर तक ले जाया जाता है और फिर मावली माता की पूजा के बाद होलिका दहन किया जाता है।
सात विशेष प्रकार की लकड़ियों से होता है दहन
यहां की होली में तेंदू, पलाश, साल, खैर, धवड़ा, हल्दू और बेर जैसी खास लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। मान्यता है कि इन लकड़ियों के जलने से निकलने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और हानिकारक कीटों का नाश करता है।
दशहरे की तरह निकाली जाती है भव्य रथ यात्रा
बस्तर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है और इसकी छवि माड़पाल की होली में भी देखने को मिलती है। होली के लिए विशेष रूप से शुभ मुहूर्त में एक भव्य रथ का निर्माण किया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे दशहरे में किया जाता है।
बस्तर राजपरिवार की भागीदारी – आज भी निभाई जाती है परंपरा
हर साल बस्तर राजपरिवार के सदस्य माड़पाल पहुंचते हैं और पूरे रीति-रिवाजों के साथ होलिका दहन में शामिल होते हैं। यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर और राजसी विरासत का प्रतीक है।
हर साल उमड़ती है हजारों श्रद्धालुओं की भीड़
यह अनोखा उत्सव देखने के लिए हर साल सैकड़ों-हजारों की संख्या में लोग छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों से माड़पाल पहुंचते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति और इतिहास की जीवंत झलक है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी संजोया जा रहा है।
संस्कृति, इतिहास और परंपरा का अनोखा संगम
माड़पाल की यह राजसी होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकसंस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर की मिसाल है। दशहरे की तरह मनाए जाने वाले इस होलिका दहन में भक्ति, आस्था और परंपराओं की गूंज सुनाई देती है, जो हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करती है।