* राजनीतिक ठीकरा और खस्ताहाल इमारतें: बच्चों का भविष्य के दांव पर राजनीति ?

धरमजयगढ –
जहाँ एक ओर शासकीय विद्यालयों और छात्रावासों की इमारतें जर्जर हालात में बच्चों के भविष्य पर बोझ बनी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी और विपक्षी नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का जैसे खेल चल रहा है !
विगत दिनों रायगढ़ लोकसभा सांसद से एक कार्यक्रम के दौरान जब एक नवनिर्मित भवन में निर्माण के कुछ ही महीनों में सीलन आने के संबंध में सवाल किया गया, तो उन्होंने तत्काल जवाब देने के बजाय गेंद विधायक लालजीत सिंह राठिया के पाले में डाल दी। उन्होंने साफ कहा कि “इस विषय पर विधायक से पूछिए, यह कांग्रेस शासनकाल में हुआ था।”
जबकि बताया यह जाता है कि जिस भवन की बात हो रही थी उसका निर्माण कार्य जनवरी 2024 में पूरा हुआ था, और यह स्मारक लेख में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जनवरी 2024 तक राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी। ऐसे में निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, लेकिन इनका जवाब जिम्मेदारी से देने के बजाय उसे पुरानी सरकार के मत्थे मढ़ देना आम राजनीतिक प्रवृत्ति बन चुकी है।दूसरी ओर कांग्रेस भी पीछे नहीं है। वह अब विपक्ष में रहकर लगातार भाजपा सरकार पर निशाना साध रही है — कभी अधूरी सड़कें, कभी अधजले स्कूल भवन, तो कभी राशन और छात्रवृत्ति, कभी युक्तियुक्तकरण जैसे मुद्दों को लेकर। परंतु दोनों ही पक्षों की राजनीतिक बयानबाजी के बीच यह बात कहीं गुम हो जाती है कि आखिर इन जर्जर भवनों में पढ़ रहे मासूम बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
मुद्दे गायब, बच्चों का जीवन दांव पर **
धरातल पर मौजूद कई स्कूल और छात्रावास ऐसे हैं जहाँ छतें टपक रही हैं, दीवारें नम हैं, और शौचालय अनुपयोगी हैं। कई जगहों पर बरसात में कक्षाएं बंद करनी पड़ती हैं, और भोजन पकाने तक की जगह नहीं बचती। इसके बावजूद सत्ता और विपक्ष दोनों के एजेंडे में सुधार की जगह केवल दोषारोपण और राजनीति ने ले ली है।
सवाल यह नहीं है कि दोष किसका है, सवाल यह है कि सुधार कौन करेगा?
समय की माँग है कि राजनीति को परे रखकर व्यवस्थागत सुधारों पर ज़ोर दिया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित और सक्षम माहौल में शिक्षा प्राप्त कर सकें।*

