*विद्यालय भवन जर्जर, बच्चे टिनशेड, तिरपाल की छाँव में पढ़ने को मजबूर — कहाँ गया मरम्मत के लिये आया फण्ड*

धरमजयगढ़ – दिनांक 24 जुलाई 2025 को “एक स्थानीय न्यूज़ पोर्टल” द्वारा प्रकाशित समाचार को गंभीरता से लेते हुए विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के निर्देश पर दिनांक 25 जुलाई 2025 को मिडिल स्कूल सोनपुर का भौतिक सत्यापन किया गया। स्थानीय समाचार पोर्टल में प्रकाशित समाचार प्रकाशन को गंभीरता से लेते हुये तत्काल संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू कर दी गई है !
जाँच प्रतिवेदन में स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान में क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है, जिससे स्कूल भवन की छतें टपक रही हैं। विद्यालय में मुख्य भवन में तीन कक्षाएं हैं, जिनमें से दो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हैं और छतों से पानी रिस रहा है। छतों की टपकन के चलते कक्षाएं पूरी तरह भीग चुकी हैं, जिससे बच्चों को बैठकर पढ़ने में काफी दिक्कत हो रही है। वर्तमान में कक्षा 1 से 8वीं तक कुल 102 छात्र-छात्राएं पंजीबद्ध हैं, लेकिन भवन की जर्जर स्थिति के कारण बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त एवं सुरक्षित स्थान नहीं है।
जाँच में यह भी सामने आया कि विद्यालय के पास कोई वैकल्पिक भवन या शेड की व्यवस्था नहीं है। विद्यालय में केवल तीन शिक्षक कार्यरत हैं। हाल ही में 21 जून 2025 को हुई विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक में भी भवन की मरम्मत की मांग रखी गई थी।
विद्यालय के प्रधान पाठक द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार, छतों से पानी टपकने और लगातार नमी के कारण न केवल शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि मध्यान्ह भोजन व्यवस्था भी ठप है। बारिश के दिनों में भोजन पकाने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं बचा है।विद्यालय भवन की स्थिति इतनी गंभीर है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। प्रधान पाठक ने रिपोर्ट में भवन की मरम्मत हेतु 6.11 लाख रुपये के प्रस्ताव को शीघ्र स्वीकृति देने की मांग की है।
जाँच प्रतिवेदन को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी महोदय के समक्ष प्रस्तुत कर आवश्यक कार्यवाही की अनुशंसा की गई है।
सरकारी शालाओं की मरम्मत के लिए समय-समय पर शासन द्वारा लाखों रुपये की राशि आवंटित की जाती है, लेकिन जब ज़मीनी हकीकत की बात की जाए, तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती है। मिडिल स्कूल सोनपुर की स्थिति इसका एक ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ जर्जर भवन, टपकती छतें और बच्चों की बदहाल शिक्षा व्यवस्था ने व्यवस्थागत खामियों की पोल खोल दी है।
*फंड के नाम पर कागज़ी कार्रवाई, ज़मीनी काम शून्य*
बार-बार की गई शिकायतों, प्रस्तावों और बैठकों के बावजूद जब विद्यालय में मरम्मत के कोई ठोस कार्य नहीं हुए, तो यह सवाल उठना लाज़िमी है — आख़िर मरम्मत के लिये आया पैसा गया कहाँ?
क्या वह सिर्फ़ कागज़ों में ही खर्च हो गया? या उसे अन्य मदों में समायोजित कर दिया गया, जिसकी जानकारी शाला स्तर पर नहीं दी गई? जिम्मेदार कौन ?
मामला सिर्फ एक शाला तक ही सीमित नहीं है, कमोबेश ज्यादातर शालाओं में ये स्थिति देखी जा सकती है, लेकिन जब तक कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए, तब तक कोई ठोस पहल होती नहीं दिखती। यह दर्शाता है कि प्रशासनिक उदासीनता और पारदर्शिता की कमी ने शिक्षा व्यवस्था को खोखला बना दिया है।
बच्चों की कीमत पर बंदरबांट?
टपकती छतों और भीगती कापियों के बीच बच्चों की पढ़ाई से समझौता किया जा रहा है। यदि किसी भवन की मरम्मत के लिए वर्षों से फंड स्वीकृत हो चुका है, तो उसे धरातल पर क्यों नहीं लाया गया? क्या इस बीच उस राशि का उपयोग कहीं और कर लिया गया? इसकी निष्पक्ष जाँच आवश्यक है!