* छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार: हरेली – हरियाली, संस्कृति और परंपरा का पर्व *

छत्तीसगढ़, भारत का एक सांस्कृतिक और कृषि प्रधान राज्य है, जहाँ लोक परंपराएं और रीति-रिवाज आज भी उतनी ही जीवंत हैं जितनी सदियों पहले थीं। वर्ष का पहला पर्व जो इस धरती की सांस्कृतिक विरासत की शुरुआत करता है, वह है “हरेली”। यह पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि इसकी जड़ें किसान संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं!
* हरेली का अर्थ और समय *
‘हरेली’ शब्द ‘हरियाली’ से बना है, जिसका आशय है – हरापन, जीवन और प्रकृति की सजीवता। यह पर्व श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जब वर्षा अपने चरम पर होती है और धरती हरी चादर से लिपटी होती है। यही समय होता है जब खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं, वृक्ष और पौधे हरे-भरे हो जाते हैं और किसान अपनी मेहनत की पहली संतुष्टि महसूस करता है।कृषि संस्कृति का उत्सव
हरेली मुख्यतः कृषक समाज का त्योहार है। इस दिन किसान अपने खेतों के औजार जैसे हल, कुल्हाड़ी, गैंती, फावड़ा, हँसिया आदि को धोकर पूजा पाठ करते हैं, वे मानते हैं कि इन उपकरणों की कृपा से ही उनका जीवन चलता है , और इनकी देख रेख और सम्मान करना इनका पावन कर्तव्य है !
*प्रकृति से प्रेम और संरक्षण का संदेश*
हरेली केवल कृषि तक सीमित नहीं है, यह प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को भी सम्मान देता है। इस दिन गांवों में पेड़ लगाने की परंपरा है। बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों सभी को पौधरोपण के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार यह पर्व पर्यावरण संरक्षण और हरियाली के प्रति जनचेतना का संदेश देता है।लोक आस्था और परंपराएँ –
हरेली के दिन गांव की महिलाएँ घर के आँगन और दरवाजों में नीम की पत्तियाँ लगाती हैं, जिससे वातावरण शुद्ध और रोगमुक्त रहे। घरों में गोबर से लीपकर शुभ प्रतीकों की रचना की जाती है। धार्मिक आस्था के तहत देवी-देवताओं की पूजा होती है!
खेल, व्यंजन और उल्लास

हरेली पर्व में गेंड़ी चलाना एक विशेष आकर्षण होता है। यह पारंपरिक खेल बच्चों और युवाओं के लिए उत्साह का केंद्र रहता है, जिसमें वे बाँस की लंबी डंडियों पर चढ़कर गली-मोहल्लों में घूमते हैं। साथ ही इस दिन पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे छेंच भाजी, भजिया, देसी चीला, फरा और ठेठरी–खुरमी भी बनते हैं। लोक आस्था और परंपराएँ *
हरेली के दिन गांव की महिलाएँ घर के आँगन और दरवाजों में नीम की पत्तियाँ लगाती हैं, जिससे वातावरण शुद्ध और रोगमुक्त रहे। घरों में गोबर से लीपकर शुभ प्रतीकों की रचना की जाती है। धार्मिक आस्था के तहत देवी-देवताओं की पूजा होती है,
*खेल, व्यंजन और उल्लास*
समाज में एकता और सहयोग का प्रतीक
हरेली न केवल पर्यावरण और खेती से जुड़ा पर्व है, बल्कि यह सामाजिक एकता, सहयोग और सौहार्द का प्रतीक भी है। लोग अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, पूजा-पाठ और खेल-कूद में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक ताने-बाने को मज़बूती मिलती है।
हरेली छत्तीसगढ़ के लोकजीवन की आत्मा है, जो कृषि, प्रकृति और संस्कृति को एक सूत्र में पिरोता है। यह त्योहार न केवल परंपरा की विरासत को जीवित रखता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी हरियाली, श्रम और सामाजिक समरसता का संदेश देता है।
हरेली की यही खास बात है – यह मिट्टी से जुड़ाव का, हरियाली का और सांस्कृतिक गौरव का पर्व है।
👉 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं)


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