ग्राम सभा की मंजूरी के बिना एसईसीएल ने हड़पी वन भूमि, उठे सवाल

धरमजयगढ़ – छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में संचालित छाल एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की विस्तार परियोजना को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि कंपनी ने ग्राम सभा की अनुमति (एनओसी) के बिना करीब 100 एकड़ से अधिक वन भूमि का अधिग्रहण कर लिया है। यह भूमि एसईसीएल के कोल प्रोजेक्ट के लिए प्रस्तावित थी, लेकिन नियमों के अनुसार ग्राम पंचायत से मंजूरी लेना अनिवार्य था, जो कि नहीं ली गई।
झूठी जानकारी से किया भूमि का अधिग्रहण
सूत्रों के मुताबिक, एसईसीएल प्रबंधन ने इस भूमि को राजस्व क्षेत्र का हिस्सा बताकर स्वीकृति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। लेकिन आरटीआई के तहत मिली जानकारी में यह खुलासा हुआ कि वन विभाग के वरिष्ठ भूमि प्रबंधन अधिकारी ने इस भूमि को वन भूमि बताया है। इस खुलासे के बाद एसईसीएल प्रबंधन पर सवाल खड़े हो गए हैं कि बिना ग्राम सभा की मंजूरी और बिना वन विभाग की स्पष्ट सहमति के यह अधिग्रहण कैसे किया गया।
55.850 हेक्टेयर वन भूमि से जुड़ा है एसईसीएल का विस्तार प्रोजेक्ट
छाल एसईसीएल का विस्तार प्रोजेक्ट रायगढ़ जिले में 55.850 हेक्टेयर वन भूमि पर आधारित है। वन भूमि होने के कारण इसके अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा की स्वीकृति अनिवार्य होती है। नियमानुसार, यदि कोई भूमि राजस्व क्षेत्र की न होकर वन क्षेत्र में आती है, तो उसे वन भूमि के रूप में ही माना जाता है और इस पर वन विभाग तथा स्थानीय ग्राम सभा की सहमति आवश्यक होती है।
हालांकि, इस मामले में एसईसीएल ने परियोजना विस्तार में ग्राम सभा की मंजूरी को नजरअंदाज कर दिया और बिना अनुमति के भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया। इससे ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों में भारी आक्रोश है।
ग्राम सभा की मंजूरी के बिना कैसे मिली अंतिम स्वीकृति?
आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, वन विभाग ने इस भूमि को वन क्षेत्र मानते हुए इसकी मंजूरी की प्रक्रिया शुरू की थी। वर्तमान में इस प्रोजेक्ट को अंतिम वन मंजूरी भी मिल चुकी है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि यदि यह वन भूमि है, तो फिर ग्राम सभा की अनुमति लिए बिना एसईसीएल को स्वीकृति कैसे मिल गई?
यह मामला न सिर्फ ग्राम पंचायतों के अधिकारों पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का भी संकेत देता है।
एसईसीएल प्रबंधन की चुप्पी, ग्रामीणों में आक्रोश
इस मामले को लेकर जब छाल एसईसीएल के सब एरिया मैनेजर से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। हालांकि, उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, एसईसीएल प्रबंधन ने यह भरोसा दिलाया कि अंतिम स्वीकृति मिलने के बाद संबंधित ग्राम पंचायतों से अनुमति ली जाएगी।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि पहले ही जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया, तो बाद में मंजूरी लेने का क्या औचित्य है? यह नियमों का उल्लंघन है और प्रशासन को इसकी निष्पक्ष जांच करनी चाहिए।
स्थानीय जनता और संगठनों की मांग – हो निष्पक्ष जांच
ग्राम सभा की मंजूरी के बिना वन भूमि के अधिग्रहण का यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। स्थानीय ग्रामीणों, सामाजिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह वन संरक्षण कानून का उल्लंघन है और इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
ग्रामीणों ने प्रशासन और राज्य सरकार से इस मामले की जांच की मांग की है। वे यह भी चाहते हैं कि यदि एसईसीएल द्वारा नियमों का उल्लंघन किया गया है, तो इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
क्या कहता है कानून?
भारतीय संविधान और वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन भूमि के उपयोग में बदलाव के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होती है। यदि यह सहमति नहीं ली जाती, तो यह अवैध भूमि अधिग्रहण माना जाता है और इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
यदि इस मामले की जांच में नियमों के उल्लंघन की पुष्टि होती है, तो एसईसीएल प्रबंधन को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
अगला कदम क्या होगा?
प्रशासनिक जांच – यह स्पष्ट किया जाए कि बिना ग्राम सभा की मंजूरी के यह भूमि कैसे अधिग्रहित की गई।
ग्रामीणों की शिकायत पर कार्रवाई – प्रभावित ग्राम पंचायतों को इस मामले में अपनी आपत्ति दर्ज करने का अधिकार है।
पर्यावरणीय प्रभाव की समीक्षा – वन भूमि अधिग्रहण का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसकी भी जांच आवश्यक है।
न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना – यदि प्रशासन निष्क्रिय रहता है, तो स्थानीय संगठनों द्वारा न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जा सकती है।
ग्राम सभा की अनुमति के बिना वन भूमि अधिग्रहण का यह मामला गंभीर है और यह प्रशासनिक पारदर्शिता और ग्रामीणों के अधिकारों पर प्रश्न उठाता है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है और क्या ग्रामीणों की मांगों को न्याय मिल पाता है या नहीं।
(रिपोर्ट: ऋषभ तिवारी)