विकास को तरसता शहर , उदासीन जनप्रतिनिधि औऱ होर्डिंग्स , बैनर , पोस्टर !

ये है धरमजयगढ़ शहर के सड़कों का हाल , कहानी बयां कर रही यह तस्वीर

बैनर-पोस्टर, होर्डिंग्स नहीं, नगर का विकास हो जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता l

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनावी प्रक्रि या जनता की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। लेकिन अफसोस की बात है कि लोकतंत्र का यह महापर्व, अक्सर व्यक्तिगत प्रचार और दिखावे की भेंट चढ़ जाता है। हर गली-मोहल्ले में बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स से पटी दीवारें हमारी राजनीति का एक आम दृश्य बन चुकी हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या नेताओं का प्रचार और बैनर-पोस्टर लगाना ही जनता के हित में है, या इसका उद्देश्य केवल व्यक्तिगत महिमा मंडन तक सीमित है?

बैनर-पोस्टरों का दुष्प्रभाव

  1. प्रदूषण और अव्यवस्था:
    बैनर और पोस्टरों के कारण सार्वजनिक स्थलों की सुंदरता बिगड़ती है। सड़क किनारे लगे ये प्रचार सामग्री न केवल शहर की छवि खराब करते हैं, बल्कि इनका कचरा पर्यावरणीय समस्या भी पैदा करता है।
  2. संसाधनों की बर्बादी:
    इन प्रचार सामग्रियों पर खर्च होने वाला पैसा, जो कि जनता के विकास कार्यों में लग सकता है, फिजूलखर्ची में बर्बाद होता है। एक अनुमान के अनुसार, बड़े शहरों में नेताओं के प्रचार पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं।
  3. गलत प्राथमिकताएं:
    बैनर-पोस्टर लगाने की होड़ में विकास कार्यों पर ध्यान कम हो जाता है। यह जनता के प्रति जवाबदेही की भावना को भी कमजोर करता है।

विकास को प्राथमिकता क्यों ज़रूरी है?

  1. सतत शहरीकरण:
    बढ़ते शहरीकरण के साथ बेहतर बुनियादी ढांचे की मांग भी बढ़ रही है। बेहतर सड़कें, सार्वजनिक परिवहन, साफ-सफाई और स्वच्छ जल आपूर्ति जैसे विषय प्राथमिकता में होने चाहिए।
  2. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं:
    एक प्रगतिशील समाज के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। पोस्टरों और बैनरों की जगह, यदि नेता अस्पताल, स्कूल और कौशल विकास केंद्रों पर ध्यान दें, तो समाज अधिक सशक्त बनेगा।
  3. सार्वजनिक भागीदारी:
    विकास के कार्यों में जनता को शामिल करना नेताओं की जिम्मेदारी है। पारदर्शिता और जवाबदेही से ही जनता का भरोसा जीता जा सकता है।

समाधान

  1. डिजिटल माध्यमों का उपयोग:
    प्रचार के लिए डिजिटल और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाया जाए। सोशल मीडिया, वेबिनार और ईवेंट्स का इस्तेमाल अधिक प्रभावी और किफायती हो सकता है।
  2. सामाजिक जागरूकता:
    जनता को यह समझाने की जरूरत है कि असली बदलाव प्रचार से नहीं, बल्कि विकास कार्यों से होता है।

निष्कर्ष

बैनर और पोस्टरों से भरा शहर केवल एक दिखावा बनकर रह जाता है, जबकि विकास के प्रयास शहर की असली पहचान बनाते हैं। नेताओं को समझना होगा कि जनता अब दिखावे से ऊपर उठ चुकी है। उन्हें केवल वादों और प्रचार से नहीं, बल्कि अपने कार्यों से जनता का दिल जीतना होगा।

“नेताओं के बैनर नहीं, बेहतर योजनाएं और उनका सही क्रियान्वयन ही सच्चा विकास है।”              ऋषभ तिवारी (ब्यूरो चीफ ) धरमजयगढ़ ,                                 मोबाइल – 8817484445


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