* कृष्ण कुंज : पर्यावरण संरक्षण का उपेक्षित प्रयास ! *

धरमजयगढ़ – भारतीय संस्कृति में वृक्षों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसी विरासत को आगे बढ़ाने हेतु वर्ष 2022 में धरमजयगढ़ वनमंडल अंतर्गत “कृष्ण कुंज” की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य था धार्मिक, सांस्कृतिक एवं औषधीय महत्व वाले वृक्षों का संरक्षण करते हुए पर्यावरण के प्रति जनचेतना को प्रोत्साहित करना। लगभग एक एकड़ क्षेत्र में लगाए गए पीपल, बरगद, आम, बेल, कदंब, नीम, आंवला, तुलसी जैसे वृक्षों के माध्यम से यह स्थल न केवल हरियाली बढ़ाने का, बल्कि नागरिकों को आध्यात्मिक व सांस्कृतिक जुड़ाव का संदेश देने का प्रयास था।
स्थानीय वन विभाग की इस पहल को शुरुआत में सराहना भी मिली। क्षेत्रीय लोग आशान्वित थे कि यह स्थान न केवल हरियाली का प्रतीक बनेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और धार्मिक पर्यटन का केंद्र भी होगा। शुभारंभ के अवसर पर इसे श्रीकृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन की तर्ज पर सजाने की कल्पना की गई थी।
किन्तु मात्र दो वर्षों के भीतर ही कृष्ण कुंज उपेक्षा और देख-रेख के अभाव का शिकार हो गया।
आज यह स्थल वीरान पड़ा है। अधिकांश वृक्षों पर न तो पानी डाला जा रहा है, न ही आवश्यक पोषण दिया जा रहा है। कई पौधे सूख चुके हैं और शेष भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। नियमित देखरेख, घास की सफाई, बाड़बंदी और सिंचाई की व्यवस्था के अभाव में यह हरित स्थल अब एक उपेक्षित भूखंड बनकर रह गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग की रुचि केवल उद्घाटन तक सीमित रही, उसके बाद किसी ने पलटकर इस स्थल की सुध नहीं ली।

यदि कृष्ण कुंज जैसी परियोजनाएं समय पर देखरेख और जनभागीदारी से संचालित की जाएं तो वे पर्यावरणीय सुधार के सशक्त उदाहरण बन सकती हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति एक चेतावनी भी है कि केवल प्रतीकात्मक पौधरोपण से पर्यावरण की रक्षा नहीं हो सकती।

जन अपेक्षा है कि प्रशासन इस स्थल की पुनः सुध ले और इसे सही मायनों में ‘कृष्ण कुंज’ बनाकर हरियाली, संस्कृति और चेतना का केंद्र बनाए !